भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्तक-4 / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 22 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लगे कुछ बाल जब पकने, इसे संकेत हम मानें
करें सब काम ही अच्छे, यही प्रण आज हम ठानें
बुढ़ापा शीघ्र आएगा, ख़ुदा के पास है जाना
मिला है जन्म मानव का, सही कर्त्तव्य पहचानें

ज़ोर का भूकम्प कैसा गाँव में आया हुआ है,
इस प्रलय से मातमी आतंक अब छाया हुआ है
नष्ट हैं घर द्वार सारे हानि है जन माल सब की,
देखकर वीभत्स आलम गाँव घबड़ाया हुआ है

हाथ से डफली बजाती नायिका संलग्न है,
ध्यान प्रियतम का लगाकर याद में ही मग्न है
शीघ्र आने कह रही है योगिनी का रूप धर,
घोर बाबा की तपस्या आज समझो भग्न है