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किसी भी नगर में रहे / बाबा बैद्यनाथ झा

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किसी भी नगर में रहे।
वहाँ हम ख़बर में रहे।

हक़ीक़त बयानी कभी,
नहीं अब नज़र में रहे।

कहाँ नौकरी मिल सकी,
पिता के बसर में रहे।

बढ़ा रोग जब तक रहा,
सदा आप घर में रहे।

छिपे रोज़ ‘बाबा’ कहाँ,
ग़ज़ल के सफ़र में रहे?