भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सागर पर शाम / बलदेव वंशी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:37, 13 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बलदेव वंशी |संग्रह= }} <Poem> चमचम बृहद आईना तोड़ दिय...)
चमचम बृहद आईना
तोड़ दिया
पत्थर मार
तमतमाये गुस्सैल सूर्य ने
और स्वयं ही
कतरा-कतरा बिखरी किरचों पर
अपनी एड़ियाँ लहूलुहान कर
रोते-रोते सो गया !