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दिव्य चेहरे पर है लाली / बाबा बैद्यनाथ झा

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दिव्य चेहरे पर है लाली।
हुई नायिका है मतवाली।

हंस गामिनी चलती है जब,
पथिक बजा देता है ताली।

आकर्षित सब हो जाते हैं,
मस्त अदाएँ देख निराली।

तीर चलाती नैनों के जब,
नहीं वार जाता है खाली।

मत्त यौवना मचल रही है,
कौन करे इसकी रखवाली।

यौवन भार बढ़ा है इतना,
झुकी पुष्प की ज्यों हो डाली।

नहीं मानती कोई बन्धन,
अचरज में बैठा है माली।

आवश्यक है ब्याह कराना,
किसकी होगी यह घरवाली।