भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती पर कवि (तीन) / कुमार कृष्ण

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 22 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=धरत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूख जाएँ यदि धरती के पोखर
मैं आँखों में बचे पानी से
सींच लूँगा कविता की जड़ें
पक्षी आएँ
बनाएं कविता के पेड़ों पर अपने घर
बस जाए मधुमक्खियों का छोटा सा कुनबा
शायद इसी तरह बचा रहे-
धरती पर संगीत
बची रहे धरती पर मिठास
डराती है मुझे नींद में भी-
राजा की तलवार
कैसे बचाऊँ शब्दों का परिवार
कैसे बचाऊँ कविता का जीवन
परेशान करते हैं बार-बार ये सवाल
फिर भी बार-बार बोता हूँ-
कविता के बीज इस धरती पर।