भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भावनाओं के क्षितिज पर / प्रताप नारायण सिंह
Kavita Kosh से
Pratap Narayan Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:22, 30 मार्च 2023 का अवतरण ('यह, भावनाओं के क्षितिज पर गुनगुनाता कौन है! नवगीत क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यह, भावनाओं के क्षितिज पर गुनगुनाता कौन है!
नवगीत कोई आचमन सा विमल अधरों पर धरे निष्पाप स्वर के कम्पनों में बोल अति निश्छल भरे
फिर, सो चुकी सम्भावनाओं को जगाता कौन है!
निष्काम, दाता-कर्म में रत कृष्ण के उपदेश सा निर्लिप्त हो हर लालसा से उमापति के वेश सा
आनंद के आयाम नव इतने, दिखाता कौन है!
वह पास कितना, दूर कितना यह नहीं परिमेय है अनुभूति में ही वास करता छुवन से अज्ञेय है
वाचालता से मौन के परिचय कराता कौन है!