भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदम कि हौआ / ऋचा जैन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:35, 14 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋचा जैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ेबरा की धारियाँ जाँघों पर
पीठ पर तेंदुए के धब्बे
ठुड्डी पर भालू के बाल
दिमाग़ में सींग
और बंदर की फ़ितरत लिए
मैं चिड़ियाघर हूँ, एक चिड़ियाघर में
तुमको लगता है, आदम हूँ!

एक मकड़ा-उलझा हुआ
जाल बुनता
फँसा हुआ, हताश, निराश
शिकार-अपने ही जाल में
तुम्हें लगा, दिमाग है मेरे पास!

ख़ुद को ही खा जाने वाला
एक तनावग्रस्त साँप हूँ।