Last modified on 27 अप्रैल 2023, at 20:18

पुकार / रुचि बहुगुणा उनियाल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 27 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुचि बहुगुणा उनियाल |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हें पुकारती हुई मेरी आवाज़ के कंपन से
थरथराती है हवा की देह
वेगवती पहाड़ी नदी के फेनिल स्वच्छ बहाव में भी
ठिठक कर रुक जाती हैं मछलियाँ
इस कातर पुकार का स्वर
छेड़ता है सिम्फनी का एक और अभिनव सुर
धू-धू कर जलती हैं तुमसे मिलने की
कोमल कामनाएँ और मेरी आत्मा से उठती लपटें
दूर पहाड़ी की चोटी पर रंगती हैं बुरुंश के
फूलों की सुकोमल पंखुड़ियां

बिछड़ जाने की पीड़ा से चोटिल
और तुम्हारे स्वर की छुअन याद करती आत्मा
जैसे एक पहाड़ी शहर हो
जिसकी हर गली के मोड़ पर
तुम्हारा इंतज़ार करती ठिठुरती स्मृतियाँ उकड़ूं बैठी हैं
कहीं दूर पहाड़ी की धार पर
उतरती नवोढ़ा वधू-सी सांझ के आँचल में
तुम्हें लगाई पुकार
बूटों की तरह टांकती है तारों की लड़ी
गहराती रात की कालिमा में ऊँगलियां डुबोकर
प्रतीक्षा में थकी आँखों को सुरमा लगाती हूँ

सुनो प्यार मेरे...
बस एक बार तुम पुकारना
शरीर के शिथिल होने से पहले
मुझे अपने दिए नाम से
इन सब जंजालों से दूर
मृत्यु की ठंडी गोद में सोने के लिए
मेरी आत्मा कात लेगी
तुम्हारे स्वर से कुनकुना सूत!