भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असरार-ए-पैदा / इक़बाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 18 मई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इक़बाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उस क़यूम को शमशीर की हाजत नहीं रहती
हो जिसके जवानों की ख़ुदी सूरत-ए-फ़ौलाद
नाचीज़ जहान-ए-मेह-ओ-परवीन तेरे आगे
वोह आलम-ए-मजबूर है, तू आलम-ए-आज़ाद
मौजों की तपिश क्या है, फ़क़्त ज़ौक़-ए-तलब है
पिनहाँ जो सदफ़ में है, वो दौलत है ख़ुदाबाद
शाहीन कभी परवाज़ से थक कर नहीं गिरता
पुर दम है अगर तू तो नहीं ख़तरा-ए-उफ़्फ़ाद