भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर में शहर की गंध है / लाल्टू

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:57, 15 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>बारिश में बहती नक्षत्रों के ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारिश में बहती
नक्षत्रों के बीच
यात्राओं पर चली
मानव की गंध।

शहर में शहर की गंध है
मानव की गंध
सड़क पर मशीनें बन दौड़ती

बचते हम सरक आते
टूटे कूड़ेदानों के पास
वहां लेटी वही मानव-गंध

मानव-शिशु लेटा है
पटसन की बोरियों में

गू-मूत के पास सक्रिय उसकी उँगलियाँ
शहर की गंध बटोर रहीं
जश्न-ए-आज़ादी से फिंके राष्ट्रध्वज में