भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझको सहरा दिखाई देता है / विवेक बिजनौरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:15, 29 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक बिजनौरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझको सहरा दिखाई देता है,
मुझको दरिया दिखाई देता है

इस समुंदर के होंठ सूखे हैं,
कितना प्यासा दिखाई देता है

कोई तारा नज़र न आये तो,
चाँद तन्हा दिखाई देता है

हर किसी चेहरे में न जाने क्यूँ,
तेरा चेहरा दिखाई देता है

ग़ौर से देख मेरी आँखों में,
और बता क्या दिखाई देता है