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रात्रि प्रवास -1943 / लुईज़ा ग्लुक / प्रतिभा उपाध्याय

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यही वह क्षण है जब तुम फिर देखते हो
ऐश पर्वत की लाल झड़बेरी को
और काले आकाश में
पक्षियों का रात में देशान्तर गमन ।

दुख होता है मुझे यह सोचकर कि
मृतक नहीं देखेंगे उन्हें,
जिन पर निर्भर हैं हम
ग़ायब हो जाती हैं वे चीज़ें ।

उन्हें दिलासा देने के लिए आत्मा तब क्या करेगी ?
मैं स्वयं को बताती हूँ शायद ज़रूरत नहीं होगी
इन सुखों की अब और
शायद नहीं होना ही, बस, काफ़ी है
कितना मुश्किल है यह कल्पना करना ।