भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपना सबकुछ छोड़ रहा है / अविनाश भारती
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:31, 7 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अविनाश भारती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपना सबकुछ छोड़ रहा है,
घर का राशन जोड़ रहा है।
कहते वालिद-अब्बा जिसको,
कितना खुद को तोड़ रहा है।
खून-पसीना हर पैसा में,
सबकी किस्मत जोड़ रहा है।
लाख कमाता बेटा फिर भी,
अपना गुल्लक फोड़ रहा है।
जब से बैठे पापा घर में,
बेटा भी मुँह मोड़ रहा है।