Last modified on 23 अगस्त 2023, at 00:08

पगडंडियाँ / राकेश कुमार पटेल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:08, 23 अगस्त 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश कुमार पटेल |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज भी धीमी रफ़्तार से
नंगे पाँव चलती पगडंडियों की
बहुत याद आती है

जो बनती थीं मजबूत पैरों की
अनायास रगडऩ से
और खेतों-मेड़ों से होकर जाती थीं
उस बाजार तक
जिसके बीच पडऩे वाले बगीचे का
हर दरख्त पहचानता था
मेरी बूढ़ी दादी को

जो मेरी उंगली पकड़े
जाती थी कभी-कभार बाजार तक
बैठते, सुस्ताते अपनी पसंद के सामान लेने

किसी चित्रकार की फलक पे खींची हुई
सफेद सर्पाकार प्रतिकृति सी
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियाँ गुम हो गईं कहीं

तेज रास्तों की रफ़्तार ने छीन लिए
नंगे पाँवों से बाजार तक जाने के अवकाश को!