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प्रेम का व्यापार कर / आनन्द बल्लभ 'अमिय'

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बाँट ले दौलत गरीबों में, कमाई व्यर्थ ना कर-
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।

आठ पहरों द्वेष में दिन क्यों यहाँ पर बीतते हैं?
नाम का धन होके मृण्मय धन पर हम क्यों रीझते हैं?
क्यों हमारे चित्त में दुख का भयावह डर बना है?
मैं, मेरा में जी रहा, जी; फिर भी सब से अनमना है।

उलझने सुलझा सभी, निर्द्वन्दता में ही जिये जा-
इस विरागी जीवनी में ब्रह्म से अभिसार कर।
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।

जी रहा आठों पहर बन लालची क्यों मोह में तू?
डूबता ही जा रहा दुर्भाग्य वन के खोह में तू।
चित्त, मन को योग में धर धर्म का पारायणी बन।
स्वार्थ से होकर परे व्रत संयमी नारायणी बन।

साध्य का प्रण कर अभय होगा तभी कलिकाल सम्मुख-
प्रेम की अनुभूति से जीवन चरित उद्धार कर।
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।

भर रहा है रात दिन क्यों इस अमाशय बावरे को।
सो रहा है, जाग; किञ्चित याद कर ले साँवरे को।
दंभ के अरि को कुचल दे क्यों निरंकुश बन रहा है?
फल लगे तरु-सा झुको क्यों व्यर्थ में ही तन रहा है?

मानवी यह देह उत्तम काज कुछ परमार्थ करले-
स्नेह, करुणा, औ' दया को जीवनी आधार कर।
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।
बाँट ले दौलत गरीबों में, कमाई व्यर्थ ना कर-
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।

आठ पहरों द्वेष में दिन क्यों यहाँ पर बीतते हैं?
नाम का धन होके मृण्मय धन पर हम क्यों रीझते हैं?
क्यों हमारे चित्त में दुख का भयावह डर बना है?
मैं, मेरा में जी रहा, जी; फिर भी सब से अनमना है।

उलझने सुलझा सभी, निर्द्वन्दता में ही जिये जा-
इस विरागी जीवनी में ब्रह्म से अभिसार कर।
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।

जी रहा आठों पहर बन लालची क्यों मोह में तू?
डूबता ही जा रहा दुर्भाग्य वन के खोह में तू।
चित्त, मन को योग में धर धर्म का पारायणी बन।
स्वार्थ से होकर परे व्रत संयमी नारायणी बन।

साध्य का प्रण कर अभय होगा तभी कलिकाल सम्मुख-
प्रेम की अनुभूति से जीवन चरित उद्धार कर।
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।

भर रहा है रात दिन क्यों इस अमाशय बावरे को।
सो रहा है, जाग; किञ्चित याद कर ले साँवरे को।
दंभ के अरि को कुचल दे क्यों निरंकुश बन रहा है?
फल लगे तरु-सा झुको क्यों व्यर्थ में ही तन रहा है?

मानवी यह देह उत्तम काज कुछ परमार्थ करले-
स्नेह, करुणा, औ' दया को जीवनी आधार कर।
रिक्त हाथों लौटना है प्रेम का व्यापार कर।