भारत तुम्हें पुकार रहा है / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
स्वर में सिंह गर्जना रव भर मृदुमय सब संगीत भुला दो
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
शान्ति साधना विफल हो चुकी, समझौतों की डोरी टूटी।
नियम और उपनियमों वाली गंग नीर की गागर फूटी।
कटक सजाकर सैन्य व्यूह को मंत्र-तंत्र उच्चाटन देकर
अहि के फन कुचल मसल दो जो बिष को फुफकार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
भस्मसात कर दो अरि दल को, रण चंडी तुम अगवानी कर।
महानाश का उत्सव भर दो रिपुदेश के भूमंडल पर।
किलकारी भरकर रणचंडी योगध्यान से रूद्र जगाओ-
खंडित है कोदंड पिनाकी, पर; अरि पर टंकार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
उग्र और नाशक मारक की क्षमता का वरदान माँगते।
मरुद्गणों सप्ती संघी में सैनिक तुमसे स्थान माँगते।
स्थानभ्रष्ट कर दो अरि का अरु महाकाश तर्जन रव भरकर
करो खंड उनचास शत्रु के जो हम पर हुंकार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
प्राण प्रिय जननी, माँ धरती रक्त सना तेरा पट धोएँगे।
ब्याज सहित सैनिक वध की कीमत, है सपथ चुकाएँगे।
नाश-नाश अब महानाश का तांडव नृतन जग देखेगा
जागो अब हे! गणाध्यक्ष यह भारत तुम्हें गुहार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
स्वर में सिंह गर्जना रव भर मृदुमय सब संगीत भुला दो
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।