व्यसन की है कामना क्यों / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
गाल सूखे, नैन धँसते, आज कुछ बालक मिले थे
मैं अचानक पूछ बैठा व्यसन की है कामना क्यों?
मुँह छिपाये, नैन नत, पग सद्य पीछे खींच लेते,
किन्तु मुख से निज विवशता को नहीं कह पा रहे थे।
स्नेह से कर थाम जब ज्यों ही सम्हाला था स्वयं ने,
अश्रु ढुलमुल धँसती आँखों से बहाये जा रहे थे।
तारुण्य के उन्माद में डोले हुए हे नौजवानो
विषभरे कंचन घटों की है तुम्हे लघु चाहना क्यों?
प्रिय लगेगी प्रथमदृष्टया मत्तता की यह अवस्था,
बंधुओं के तर्क, शुभशंशाएँ झूठी-सी लगेंगी।
मद्य में आसक्त सहचारी सभी होंगे तुम्हारे,
और तुमसे दीन दुनियाँ भी सहज रूठी लगेंगी।
मदभरे मित्रमंडली के विपिन में खोते युवाओ
सत्य का हिम्मत से बोलो कर रहे नहीं सामना क्यों?
एक गहरी पीर उर में ले तभी बोला अचानक,
रूपसी की वंचना से, सूखता वह एक बालक।
आह! निकली हीय से सस्वर, बताया बोध उनको,
रे! कुसंगी तुच्छ बातों पर न बनते स्वत्व घालक।
कामनाओं के क्षणिक आनंद से घिरते जवानो
त्यागकर मदपान शुभ हित कर रहे नहीं साधना क्यों?