भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवि / मरीना स्विताएवा / वरयाम सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:11, 18 सितम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मरीना स्विताएवा |अनुवादक=वरयाम स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दूर की बात छेड़ता है कवि
बहुत दूर की बात खींच ले जाती है कवि को

ग्रह - नक्षत्रों...सैकड़ों मोड़ों से होती कहानियों की तरह
हाँ और ना के बीच
वह घण्टाघर की ओर से हाथ हिलाता है
उखाड़ फेंकता है सभी खूँटे और बन्धन ...

कि पुच्छल तारों का रास्ता होता है कवियों का रास्ता
बहुत लम्बी कड़ी कारणत्व की
यही है उसका सूत्र ! ऊपर उठाओ माथा
निराश होना होगा तुम्हें
कि कवियों के ग्रहण का
पूर्वानुमान नहीं लगा सकता कोई पंचांग

कवि वह होता है जो मिला देता है ताश के पत्ते
गड्ड-मड्ड कर देता है भार और गिनती
कवि वह होता है जो पूछता है स्कूली डेस्क से
जो काण्ट का भी खा डालता है दिमाग
जो बास्तील के ताबूत में भी
लहरा रहा होता है हरे पेड़ की तरह

जिसके हमेशा क्षीण पड़ जाते हैं पदचिन्ह
वह ऐसी गाड़ी है जो हमेशा आती है लेट
इसलिए कि पुच्छ्ल्तारों का रास्ता
होता है कवियों का रास्ता जलता हुआ
न कि झुलसता हुआ
उद्विग्न लेकिन सन्तुलित, शान्त
यह रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा
पँचाँग या जन्त्रियों के लिए बिल्कुल अज्ञात !

शब्दार्थ :
(बास्तील — पेरिस स्थित कारावास, जिसे पेरिस की क्रान्तिकारी जनता ने 1789 में ध्वस्त कर दिया था ।)

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह

लीजिए, अब इसी कविता को मूल रूसी भाषा में पढ़िए
             Марина Цветаева
     Поэт — издалека заводит речь…

Поэт — издалека заводит речь.
Поэта — далеко заводит речь.

Планетами, приметами, окольных
Притч рытвинами… Между да и нет
Он даже размахнувшись с колокольни
Крюк выморочит… Ибо путь комет —

Поэтов путь. Развеянные звенья
Причинности — вот связь его! Кверх лбом —
Отчаетесь! Поэтовы затменья
Не предугаданы календарем.

Он тот, кто смешивает карты,
Обманывает вес и счет,
Он тот, кто спрашивает с парты,
Кто Канта наголову бьет,

Кто в каменном гробу Бастилий
Как дерево в своей красе.
Тот, чьи следы — всегда простыли,
Тот поезд, на который все
Опаздывают…
— ибо путь комет

Поэтов путь: жжя, а не согревая.
Рвя, а не взращивая — взрыв и взлом —
Твоя стезя, гривастая кривая,
Не предугадана календарем!

1923 г.