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स्वप्न देखने में हरिया अब, हुआ बहुत ही माहिर / आनन्द बल्लभ 'अमिय'

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स्वप्न देखने में हरिया अब,
हुआ बहुत ही माहिर।
गाँव छोड़ दिल्ली को जबसे,
गया निवाले खातिर।

दशा फिरेगी सोच सोचकर
बाग बाग हो जाता,
सनद पोटली लिये हाथ वह,
जाॅब खोजने जाता।

कुछ पल को सुस्ता लेता जब,
दिखे मदारी, साहिर।

बहुत दूर के चचा का उसने
थाम लिया है दामन।
लेकिन कोरोना के कारण,
हुआ पड़ा है नियमन।

मस्त मलंगा नजरबन्द है,
करे किसे अब जाहिर।

सोच रहा है गाँव लौटकर,
निज व्यवसाय करूँगा।
दाना पानी भले उठे पर,
शहर नहीं जाऊँगा।

खत्म लाॅकडाउन होने पर,
चलूँ शहर से बाहिर।