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सभी से ख़फ़ा है ज़माना तुम्हारा / पंकज कर्ण

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सभी से ख़फ़ा है ज़माना तुम्हारा
अभी खुरदुरा है ज़माना तुम्हारा

यहाँ आदमी की न होती इबादत
ये कैसा नया है ज़माना तुम्हारा

ग़रीबों का शोषण, ज़लालत, हिक़ारत,
अज़ल से सहा है ज़माना तुम्हारा

कभी अर्स है तो कभी फर्श जैसा
बड़ा सिरफिरा है ज़माना तुम्हारा

वफ़ा से नहीं बेवफ़ाई से 'पंकज'
लबालब भरा है ज़माना तुम्हारा