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तुम प्रेमी की अमर साधना / पीयूष शर्मा
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तुम प्रेमी की अमर साधना, मधुर माधुरी लगती हो
संदल की खुशबू से भीगी, प्रेम पाँखुरी लगती हो
मथुरा से वृन्दावन तक है शोर यही दीवानों का,
जिस पर मोहन मुग्ध हुए तुम, वही बाँसुरी लगती हो