भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करने हम ज़िन्दगी की / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 8 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
करने हम ज़िन्दगी की उगाही चले।
जंगलों की जहाँ राजशाही चले।
जिनके दर्शन से आँखों को परहेज़ है,
उनकी करने को हम वाहवाही चले।
आज की राजनीति में जायज है सब,
बेवजह कुर्सियाँ, जूते, स्याही चले।
लेना भी साँस दुश्वार है अब यहाँ,
जहर घोले हवा की तबाही चले।
जो घोटाले में पकड़े गये रहनुमा,
जेल में उनकी अब भी गवाही चले।
जो विदेशों में है काला धन देश का,
उसको प्रभात लाने सिपाही चले।