भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी ज़िन्दगी ही बनी कविता / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:43, 15 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी ज़िन्दगी ही बनी है कविता।
मेरे साथ हरदम चली है कविता।

है फुर्सत तो देखो मेरी पुस्तकों में,
अभी भी हरी है भरी है कविता।

जीवन का सपना भी हो शायद पूरा,
बड़ी मेहनत से गढ़ी है कविता।

कभी रंजोग़म है कभी तो हैं खुशियाँ,
इन्हीं वादियों में फली है कविता।

वहाँ रौशनी का समां है हमेशा,
जहाँ बनके दीपक जली है कविता।