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मेरी ज़िन्दगी ही बनी कविता / हरिवंश प्रभात

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मेरी ज़िन्दगी ही बनी है कविता।
मेरे साथ हरदम चली है कविता।

है फुर्सत तो देखो मेरी पुस्तकों में,
अभी भी हरी है भरी है कविता।

जीवन का सपना भी हो शायद पूरा,
बड़ी मेहनत से गढ़ी है कविता।

कभी रंजोग़म है कभी तो हैं खुशियाँ,
इन्हीं वादियों में फली है कविता।

वहाँ रौशनी का समां है हमेशा,
जहाँ बनके दीपक जली है कविता।