भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस नदी की तेज लहरों में / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:40, 17 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस नदी की तेज लहरों में हुए जो पार हैं।
आस कुछ हैं, ख़ास कुछ हैं, पर मेरे सब यार हैं।

रुक नहीं सकता क़दम हरगिज़ मेरा यह जान लो,
धूप बारिश कुछ भी हो, चलने को यूँ तैयार हैं।

नागरिक हम देश के सब एक हैं इसको समझ,
भाई-चारा छोड़ के क्यों, लड़ रहे बेकार हैं।

उनकी राहों पर चलें सब देश के ये नवजवान,
पूर्वजों को पढ़ते रहना, बस यही उपकार है।

आँसुओं के फूल अर्पण कर, शहीदों के लिए,
शान से वे देश को रखते, बड़े किरदार हैं।