उषा / अलिकसेय ख़मिकोफ़ / अनिल जनविजय
दिन और रात के बीच
ईश्वर ने तुम्हें बनाया
एक सनातन परिधि की तरह
आँच के नीललोहित वस्त्र पहनाए
और साथी के रूप में सहचरी दी ।
जब नीले आसमान में
चुपचाप तुम चमकती हो, प्रिया !
तुम्हें देख मैं सोचता हूँ –
हे उषा !
तुम्हारी ही तरह हैं हम –
अग्नि और शीत का घोल
स्वर्ग और नरक का झोल
प्रकाश और तम का हिल्लोल ।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए
Алексей Хомяков
ЗАРЯ
Тебя меж нощию и днем
Поставил бог, как вечную границу,
Тебя облек он пурпурным огнем,
Тебе он дал в сопутницы денницу.
Когда на небе голубом
Ты светишь, тихо дорогая, -
Я мыслю, на тебя взирая:
Заря!
Тебе подобны мы-
Смешенье пламени и хлада,
Смешение небес и ада,
Слияние лучей и тьмы.
1825 г.