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कुहरा / स्वप्निल श्रीवास्तव
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कुहरा इतना घना था कि
मुझे अपना हाथ नहीं
दिखाई दे रहा था
तुम्हारा हाथ दिखाई दे रहा था
क्योंकि वह मेरे हाथ में था
अन्धेरे में कुछ न दिखाई दे
स्पर्श से हम सहज देख
सकते हैं
स्पर्श से हम देखने के साथ
अनुभव भी करते हैं
देखना — एक अधूरा काम है
इसलिए अन्धेरे इतने बुरे
नही होते जितना बुरा होता है
भीतर का अन्धेरा