भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी धरती के बारे में / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:58, 5 फ़रवरी 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव |अनुवादक=मदनलाल मध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपनी धरती के बारे में
कहना चाहा बहुत, नहीं कुछ भी कह पाया,
भरी खुरजियाँ संग लिए हूँ
हाय मुसीबत, मैं तो उनको खोल न पाया !
अपनी भाषा में दुनिया का
गाना चाहा गीत, मगर मैं गा न पाया,
लादे हूँ, सन्दूक पीठ पर
हाय मुसीबत, ताला पर न खुला खुलाया !
रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु