भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
द्वार पर आलेख / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:01, 5 फ़रवरी 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव |अनुवादक=मदनलाल मध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे घर की अगर उपेक्षा, कर तू जाए, राही !
तुझ पर बादल-बिजली टूटें, तुझ पर बादल बिजली !
मेरे घर से अगर दुखी मन, हो तू जाए, राही !
मुझ पर बादल-बिजली टूटें, मुझ पर बादल-बिजली !
रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु