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कोई तो है जो अँधेरों में भी उजाला है / नफ़ीस परवेज़
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कोई तो है जो अँधेरों में भी उजाला है
सफ़र हयात का आसान करने वाला है
लहकती शाख़ पर क़ायम है आशियाँ मेरा
सबा ने गोद में अपनी मुझे सँभाला है
किया सवाल तो दिल ने हमें यूँ बहलाया
ज़रा-सी देर में मौसम बदलने वाला है
करें भी ज़िक्रे-वफ़ा किस लिए ज़माने में
ये मुद्दआ ही नहीं क्यों इसे उछला है
अता हुए हैं हमें अश्क जो ज़माने से
मिरे लबों ने तबस्सुम में उनको ढाला है
वो मुद्दतों से नहीं है मिरी निगाहों में
न जाने दिल ने उसे क्यों नहीं निकाला है