भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नफ़रतों का काम ही था तोड़ना तोड़ा हमें / धर्वेन्द्र सिंह बेदार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:34, 19 अप्रैल 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धर्वेन्द्र सिंह बेदार |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नफ़रतों का काम ही था तोड़ना तोड़ा हमें
उल्फ़तो अफ़्सोस तुमने भी नहीं जोड़ा हमें

इस क़दर तन्हा न होते हम ज़माने में कभी
बख़्श देती प्यार गर तू ज़िंदगी थोड़ा हमें

मौत हमसे थी ख़फ़ा अब तू भी निकली बेवफ़ा
ज़िंदगी तूने कहीं का भी नहीं छोड़ा हमें

आप हम पर वक़्त का ज़ुल्म-ओ-सितम तो देखिए
वक़्त ने मारा बहुत है दर-ब-दर दौड़ा हमें

ज़ख़्म दिल का बन गया नासूर अब चारागरो
अब दवा किस काम की अब ज़हर दो थोड़ा हमें

लोग वह ख़ुश हैं हमारी मौत की सुनकर ख़बर
लोग जो भी मानते थे राह का रोड़ा हमें