भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कंटक भेल अछि दुर्भेद्य अरण्य / उदय नारायण सिंह 'नचिकेता'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 27 अप्रैल 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदय नारायण सिंह 'नचिकेता' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम सब अग्नि-युग में
अग्निक ऊपर द' कए भ्रमण केलहुँ।
भ्रम हमरा सभक आदर्श कें ज़रा नहि सकल ;
सागर हमरा सभक प्रतिबन्धक नहि भेल,
ओकर हृदय-द्वार 'मोजेक' भ' गेल छल।

कण्टक कें केलहुँ पददलित, परन्तु हम सब छी चाणक्यक भग्नावशेष।
तैं ओकरा उन्मूलित नहि केलहुँ।
ओकर ऊपर द' कए गेल छी पूर्णक दिस, पूर्ण क सन्धान मे।
सामने कालक मुख-व्यादन
उत्साहक प्रतिबन्धक अछि।

लौटैत काल देखलहुँ-
कण्टक छल बीया;
परिणत भेल अछि दुर्भेद्य अरण्य मे।