भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समभार / एरिष फ़्रीड / प्रतिभा उपाध्याय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:48, 7 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एरिष फ़्रीड |अनुवादक=प्रतिभा उपा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कविता है सच्ची
दुनिया है झूठी
मिटाता हूँ मैं अनावश्यक
आवश्यक हो जाता है
स्पष्ट
दुनिया मिटाती है आवश्यक
अनावश्यक हो जाता है
धुँधला
दुनिया से लगता है
डर मुझे
कमज़ोर है वह
कविता से भी।
मूल जर्मन से अनुवाद - प्रतिभा उपाध्याय