भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुँवारी धूप / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 21 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हल्दी के
सपने आँखों में
सजा रही,
सरसों के
फूलों सँग
खड़ी कुँआरी धूप
थोड़ी-सी
ही बड़ी हुई है
फुदक रही,
एक ख़ुशी
उसके अंदर से
छलक रही
बाद शिशिर के
लगती
कितनी प्यारी धूप
आँखों में
मधुमास-मिलन
के सपने धर,
नज़र रख रही
वह सेमल की
डाली पर
छुईमुई-सी
सिमट रही
बेचारी धूप
आएँगे
दिन जीवन में
टेसू वाले,
होंगे सुर्ख
अधर पर
महुआ के प्याले
सोच-सोच
खिल उठी
पुनः सुकुमारी धूप।