भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है भंवरे को जितना कमल का नशा / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:02, 21 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राम प्रसाद शर्मा "महर्षि" |संग्रह= नागफनियों ने ...)
है भंवरे को जितना कमल का नशा
किसी को है उतना ग़ज़ल का नशा
पियें देवता शौक से सोमरस
महादेव को है गरल का नशा
हैं ख़ुश अपने कच्चे घरौंदों में हम
उन्हें होगा अपने महल का नशा
पिलाकर गया है कुछ ऐसी अतीत
उतरता नहीं बीते कल का नशा
कोई गीतिका छंद में है मगन
किसी को है बहरे-रमल का नशा
बड़ी शान से अब तो पीते हैं सब
कि फ़ैशन हुआ आजकल का नशा
पियो तुम तो महरिष सुधा शांति की
बुरा युद्ध का एक पल का नशा