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गलत वक्त / प्रिया जौहरी

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कुछ बातें कही नहीं जाती
या यूं कहूँ कि कह नहीं पाते हैं लोग
ठीक वैसे ही जैसे कुछ लोग
मिल नहीं पाते
या लोग मिल जाते है ग़लत वक़्त पर
ये ग़लत वक़्त का मिलना
अजीब-सा ही लगता है
ऐसे में मिलने से ज्यादा
अच्छा बिछड़ना लगता है
वही मिलना जो
कभी ख़ुशी देता है
वही मिलना दुःख से सराबोर कर देता है
और अंत में सिर्फ़ नियति बच जाती है
जिसको स्वीकार कर लेते हैं
या यूं
कहूँ स्वीकार करना ही पड़ता है ।