भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैरों में है थकन भरी हलकान जान है / अर्चना जौहरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:39, 31 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना जौहरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैरों में है थकन भरी हलकान जान है
मीलों का है सफ़र जहाँ मेरा मकान है

चेहरा हरेक अजनबी पथरीले रास्ते
बस धूप है न छांव का नामो-निशान है

पर कट चुके हैं कबके मिरे उड़ न पा रही
अब भी मेरी नज़र में मगर आसमान है

अब सच कहूँ तो एक मैं ही हूँ, मेरे लिए
वरना तो साथ हैं सभी दुनिया जहान है

टूटी ज़रूर पर नहीं हारूँगी मैं कभी
मुझको मेरे वजूद पर अब भी गुमान है