भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिश्तों के शीशे / अर्चना जौहरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:43, 31 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना जौहरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रुकी रुकी साँसों में
झुकी झुकी आँखों में
एक बूँद पानी को
अब तलक भी प्यासी है।
जम गयी उदासी है।
रिश्तों के शीशे भी
धुन्धलाये लगते हैं
आँखों की कोरों से
सोग बन छलकते हैं
क्या है ये उलझन
ये कैसी बदहवासी है।
कौन किधर खो गया
ये रस्ता क्यूँ सूना है
पत्तों पर शबनम का
बोझ हुआ दूना है
हो हल्ला यूँ ही हुआ
बात तो ज़रा-सी है।