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मुझपे फिर नज़्म कैसे लिख डाली / शिवांगी गोयल

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कोई कविता मिली थी क्या मुझमें
या कोई रेख़्ता मुकम्मल था?
मेरी तस्वीर-भर को देखा था
या कोई कारवाँ मुसलसल था?

रात मैं रोज़ जैसी सोई थी,
तुम भला ख़्वाब जैसे क्यों जागे?
मैं कोई शब्द थी ज़हन का क्या,
मेरी तस्वीर क्यों रखी आगे?

मैं तो वह बदन भी नहीं हूँ जाँ
जिसको तुम महजबीं-सा चूम सको;
ना ही वह काफ़िया ग़ज़ल का हूँ
जिसको तुम गुनगुना के झूम सको

चन्द अशआर से बहल जाऊँ
इतनी तो मैं नहीं भोली-भाली!
फिर भला इतना प्यार क्यों मुझसे?
मुझपे फिर नज़्म कैसे लिख डाली!