भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब के सब असाधारण रूप से शान्त हैं / अवधेश कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:11, 7 जून 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक जटिल कॉमेडी के विकट दुखान्त में
यानी पटाक्षेप के बाद
शुरू करते हुए असली नाटक
सब के सब असाधारण रूप से शान्त हैं :

द्रुत से फिर विलम्बित हो गई है
लय पार्श्व-संगीत की
क्लाइमेक्स से
नीचे उतर रही है घटना;
घुटनों
के
बल
एण्टीक्लाइमेक्स में

नाटक का आरम्भ
फिर दर्शकों के बीच से होगा; फिर
ढूँढ़ा जाएगा एक विदूषक
जो इस भीड़ को जनता कहकर
सम्बोधित करेगा; और सरलता
से अधिनायक बन जाएगा ।

फिर असाधारण रूप से शान्त
सब के सब
साधारण रूप से चीख़ने लगेंगे ।

घटना चढ़ने लगेगी क्लाइमेक्स पर
पार्श्वसंगीत की लय
विलम्बित से द्रुत हो जाएगी,
पटाक्षेप से पूर्व ही होगा असली
नाटक !

यानी
एक जटिल त्रासदी में
अन्तर्निहित होगी
एक शाश्वत कॉमेडी !