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अब भी / ऋचा दीपक कर्पे

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सुनो,
तुमसे कहती नहीं हूँ
लेकिन ज़हन में अब भी
यादें तुम्हारी होती हैं
तुमसे करती नहीं
लेकिन ख़यालों में अब भी
बातें तुम्हारी होती हैं

आज भी गर
मिल जाता है कहीं
रहगुज़र अपना
दिल के आसमान में
छिटक जाती है
यादों की चांदनी
और सपनों में मुलाकातें
तुम्हारी होती है!

मुझे याद है
वो हर एक किस्सा
जब हम तुम साथ थे
तुम मुझसे दूर होकर भी
मेरे कितने पास थे!
आज तुमसे जुदा होकर
दिन भले ही मेरे हैं
लेकिन अब भी रातें
तुम्हारी होती हैं ..

अब, कलम से
दोस्ती कर ली है मैंने
दिल की बातों को
लफ्ज़ों में बयां करती हूँ
कलम को थामती हैं
उँगलियाँ मेरी
पर स्याही और दवातें
तुम्हारी होती है....

सुनो,
तुमसे कहती नहीं हूँ
लेकिन ज़हन में अब भी
यादें तुम्हारी होती हैं
तुमसे करती नहीं
लेकिन ख़यालों में अब भी
बातें तुम्हारी होती हैं