भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टूटता तारा / ऋचा दीपक कर्पे
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:01, 18 जनवरी 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋचा दीपक कर्पे |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कहते हैं
कुछ मांग लेना चाहिए
जब कोई तारा
आसमान से टूट कर गिरता है,
क्यों कहते होंगे ऐसा?
शायद इस विराट ब्रह्माण्ड से
एक तारे का टूटकर गिरना
और ठीक उसी समय
हमारा उसे देखना
असाधारण है
अलौकिक है
और यदि ऐसा है
तो आज मैंने
अपनी खिड़की में बैठे-बैठे
चांदनी के पेड़ से
एक फूल झरते देखा
मुझे उतना ही अलौकिक
और असाधारण लगा वह भी
इसलिए बिना एक पल गवाए
मैंने माँग लिया
कुछ मनचाहा...