भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मालकोस / उत्पल डेका / नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:59, 1 फ़रवरी 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्पल डेका |अनुवादक=नीरेन्द्र ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक संगीत लेख की तरह
एक जुलाहा पक्षी
कपिलिपरिया साधु गाता है
 
मैने सुना है
मौन का हर स्वर
 
दोपहर को गाया जाने वाला गीत
इसके बिना और क्या है ?
 
शब्द उलझकर खो जाते हैं
गुमनामी के किसी कोने में
 

शायद मैं उन्हें
अतीत की परिचित आवाज़ों के बीच
कभी नहीं पाऊँगा

मूल असमिया भाषा से अनुवाद : नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया