भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोणार्क / गायत्रीबाला पंडा / शंकरलाल पुरोहित

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 19 फ़रवरी 2025 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिना हलचल हुए
वर्ष पर वर्ष
स्थिर मुद्रा में खड़े रहना ही
हमारी अभिनवता, कोई कहता ।

हमारी नग्नता ही हमारा प्रतिवाद
और दूसरा स्वर जुड़ता।

उल्लास और आर्तनाद को माँग-माँग
पत्थर बन गए,
हेतु होते विस्मय का,
पथिक का, पर्यटक का ।

प्राचुर्य और पश्चात्ताप में गढ़ा
एक कालखण्ड
क्या हो सकता है कोणार्क ?

समय है निरुत्तर ।

मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित

</poem>