भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मछली की आंख / संतोष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:42, 30 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अर्जुन देख रहा था
केवल मछली की आँख
जिसे बेधना था उसका लक्ष्य
नहीं थी मन में आकांक्षा
द्रौपदी को पाने की
नहीं उदित हुआ था
मन में प्रेम
स्वयंवर भी लक्ष्य न था
केवल मछली की आँख को
बेधना ही महती महत्त्वाकांक्षा थी

शायद इसीलिए बंट गई द्रौपदी
सघन उपादानों में
अर्जुन की तनी हुई महत्त्वाकांक्षा
की प्रत्यंचा ने
बांट दिए कुल के संस्कार
बांट दी नारी की एकनिष्ठता