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जब परिंदा उड़ान भरता है / संतोष श्रीवास्तव
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फलक सजदे में झुका जाता है
सर्द मौसम की खलिश भूल
शाख का हर फूल
चिटक जाता है
पत्ते पत्ते से सदा आती है
मर्हबा दूर तलक
गूंज बिखर जाती है
जब परिंदा परवाज को
पर तौलता है