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फिर चेहरे पर चेहरा निकला / अशोक अंजुम
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फिर चेहरे पर चेहरा निकला
तू भी अपनों जैसा निकला
भीगा-भीगा सहरा निकला
सूखा-सूखा दरिया निकला
तेरा-मेरा रिश्ता भी क्या
रिश्ता कहाँ तमाशा निकला
अब पछताने से क्या हासिल
जब हाथों से मौका निकला
हम-तुम साथ, वादियाँ दिलकश
आँख खुलीं तो सपना निकला
जिन राहों पर साथ चले हम
कितना घना अँधेरा निकला
दो दिल एक किस तरह होते
परदे में फिर परदा निकला
कैसे दोनों ‘हम’ हो पाते
हम में ‘तेरा-मेरा’ निकला
मुझको धरती ने कब छोड़ा
तू भी कद से ऊँचा निकला
दिल की बातें समझ न पाया
दिल भी आख़िर बच्चा निकला