भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संघर्षों से हारे दिन / अभिषेक कुमार सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 17 अप्रैल 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिषेक कुमार सिंह |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संघर्षों से हारे दिन
मैं हूँ और बेचारे दिन

धूप खिली तो नर्म हुये
सख्त,ठिठुरते सारे दिन

रात की दुल्हन शाम ढले
झुककर रोज़ बुहारे दिन

यादों का मौसम लौटा
लौट आये बंजारे दिन

तुम बिन एक से लगते हैं
मीठे हों या खारे दिन

नींद खुली और आ धमके
ख्वाबों के हत्यारे दिन

जाल दुखों का फेक रहे
मुझपे सब मछुआरे दिन

लौट रहे हैं पंछी अब
जा जा तू भी जा रे दिन