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शेष होते हुए / गोविन्द माथुर
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शेष होते हुए

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रचनाकार | गोविन्द माथुर |
---|---|
प्रकाशक | जनजीवन प्रकाशन, जयपुर |
वर्ष | 1985 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | छन्दहीन |
पृष्ठ | 90 |
ISBN | |
विविध |
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- आत्महत्या से पहले / गोविन्द माथुर
- अस्तित्व / गोविन्द माथुर
- एक अनाम दर्द / गोविन्द माथुर
- डूबना और डूबना / गोविन्द माथुर
- प्रसंगहीन / गोविन्द माथुर
- जंगल की आग / गोविन्द माथुर
- उजाले की पहचान / गोविन्द माथुर
- उखड़े हुए चेहरे / गोविन्द माथुर
- उजाले में खो जाने से पहले / गोविन्द माथुर
- वे लोग / गोविन्द माथुर
- फर्क इतना ही है / गोविन्द माथुर
- जरूरी कुछ भी नहीं / गोविन्द माथुर
- भटकाव / गोविन्द माथुर
- हरे स्वप्न के अतिरिक्त / गोविन्द माथुर
- रौंदते हुए / गोविन्द माथुर
- क्योंकि मैं तुम्हें जानता हूं / गोविन्द माथुर
- मेरे समय का इतिहास / गोविन्द माथुर
- शेष होते हुए (कविता) / गोविन्द माथुर
- क्योंकि में अभिमन्यु नहीं हूं / गोविन्द माथुर
- अपने से लौटते हुए / गोविन्द माथुर
- तुम्हारे और मेरे बीच / गोविन्द माथुर
- मेरी आंखें / गोविन्द माथुर
- शब्दों की ताजगी के लिए / गोविन्द माथुर
- छगनलाल बीमार है / गोविन्द माथुर
- हवा को कैद करने की साजिश / गोविन्द माथुर
- वे लोग और वे लोग / गोविन्द माथुर
- खेल कठपुतलियों का / गोविन्द माथुर
- मांस के हिस्सेदार / गोविन्द माथुर
- मेरे पिता जवाब दो / गोविन्द माथुर
- घर : एक सहमा हुआ अहसास / गोविन्द माथुर
- मेरी मां का स्वप्न / गोविन्द माथुर
- मैं असभ्य हूं / गोविन्द माथुर
- ये झूठ है कि ईश्वर मर गया / गोविन्द माथुर