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आग खाता घोड़ा / मरीना स्विताएवा

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आग खाता हुआ यह घोड़ा है मेरा ।
वह दुलत्ती नहीं मारता,
उसे गुस्सा नहीं आता ।
जहाँ साँस लेता है मेरा घोड़ा
वहाँ फूटता नहीं है कोई झरना,
उग नहीं पाती है घास
जहाँ पूँछ हिलाता है वह ।

ओ मेरे आग-घोड़े-- भुक्खड़ पेट ।
ओ आग और आग पर बैठे सवार,
लाल ग्रीवा से उलझ गए हैं अयाल
और आकाश पर उभर आई है
आग की अनगिनत धारियाँ ।

रचनाकाल : 14 अगस्त 1918

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह