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बेसहारा हवा में / मरीना स्विताएवा

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निष्प्राण, बेसहारा हवा में
मेरा यह सफ़र
बेसहारा तारों की थरथराहट
और पटरियों के तीखे मोड़...

मानो लोहे की इन पटरियों पर से
हाँकी जा रही हो मेरी ज़िन्दगी
इस बेसहारा वक़्त और इन दो फ़ासलों में से...
(हो जाओ नतमस्तक रूस के सामने)

हाँ, ख़ून हुआ है मेरी ज़िन्दगी का
अंतिम नसों में से
इस बेसहारा समय में
बह रहा है ख़ून दो धाराओं में ।


रचनाकाल : 28 अक्तूबर 1922

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह